अनंत ब्रह्मांड के रचयिता ( सृजनहार) कैवल कर्ता के परम विशेष पाटवी अंश कुबेरस्वामी श्रीमत् करुणासागर का संवत 1829 माघ शुक्ल द्वितीया को कासोर गांव (आनंद, गुजरात) की बनखंडी(जंगल) में प्राकट्य हुआ । कर्ता का आदेश पाते ही वे कैवल धाम से निकलकर महामंड इंड में आए। निरंजन लोक से लेकर सूर्य लोक तक रास्ते में आने वाले दैवीय धामों को परमगुरू ने कर्ता का लक्ष्य दीय। फिर पृथ्वी पर पधारे l पृथ्वी के छह द्वीपों को कैवल ज्ञान से जागृत कर अंत में उनका सातवें दीप में आगमन हुआ l सृष्टि के आदि में ब्रह्मा के पांचवें मुख का शिवजी द्वारा छेदन(संहार) होने से पांचवें वेद का ज्ञान लुप्त हो गया था l करोडों कल्पों से भटकते जीवों को इस पंचम वेद ( सूक्ष्म वेद ) का ज्ञान बताकर अखंड कैवल मोक्ष का मार्ग दिखाया। गुरु परंपरा का निर्वाह करने के लिए उन्होंने सारसा गांव (आनंद, गुजरात) में गुरुगादी की स्थापना की और जम्मू द्वीप में 105 साल रहे । उस दरमियान परमगुरु श्रीमत् कुबेर स्वामी ने अनेक गद्य-पद्य रचनाओं सहित विविध धर्म ग्रंथों की रचना की। जडन का भेद बताकर देह को सजीवन रखने वाले अपने चैतन अंश की पहचान करवाई और अंश जिसकी सजातीय है ऐसे अंशी की समझ देकर अंश किस प्रकार अंशी को मिल सकता है उसका मर्म ओर उपासना बताया l